कक्षा 10 विज्ञान – पाठ 5 जैव प्रक्रम(RCSCE Question Bank Solution 2024)

यहां पर आप राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड अजमेर द्वारा जारी किए गए एवं शाला दर्पण की सहायता से बनाए गए क्वेश्चन बैंक कक्षा 10 विज्ञान के पाठ 5 जैव प्रक्रम मैं से पूछे जाने वाले सभी ऑब्जेक्टिव प्रश्न और लघु उत्तरात्मक प्रश्नों का जवाब देख सकते हैं, RBSE 10th science 2024 एवं राजस्थान बोर्ड कक्षा 10 की विज्ञान की परीक्षाओं के लिए यह सभी प्रश्न और उनके जवाब आपके लिए काफी फायदेमंद साबित होंगे, RCSCE Question Bank Solution 2024 Class 10th Science को यहां पर एक-एक करके डाला जा रहा है

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इन प्रश्नों को यहां पर देखने के साथ-साथ आप इन्हें यूट्यूब पर भी देख सकते हैं जिसका पूरा वीडियो आपको नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करने के बाद मिल जाएगा, इस यूट्यूब चैनल पर आपको राजस्थान बोर्ड की प्रत्येक कक्षाओं से जुड़े वीडियो मिल जाएंगे इसीलिए आप इसे जरूर सब्सक्राइब करें समय

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ऑब्जेक्टिव प्रश्न

वूमेन संपूर्ण में से किस तंत्र का भाग हैउत्सर्जन
जठर रस में कौन सा अम्ल पाया जाता हैहाइड्रोक्लोरिक
ल मानव में भोजन को काटने और चीरने फाड़ने के लिए कौन से दांत उपयोगी हैकृतनक और रदनक
प्रोस्टेट ग्रंथि संबंधित हैनर जनन तंत्र
हीमोग्लोबिन रुधिर में पाया जाता हैलाल रुधिरकनिका
श्वसन में ग्लूकोज प्रायवेट में विखंडित हो जाता हैकोशिका द्रव्य
पिरुवाते के विखंडन से विधिया श्वसन से कार्बन डाइऑक्साइड जल और ऊर्जा बनती है यह क्रिया होती हैमाइटोकांड्रिया
प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के लिए आवश्यक नहीं हैऑक्सीजन
उत्सर्जन तंत्र के क्या इकाई हैनेफ्रॉन
मानव में श्वसन तंत्र की क्रियात्मक इकाई कौन सी हैकूपिका
पत्तियों का हरा रंग किस वर्ण के कारण होता हैक्लोरोफिल
सामान्य व्यक्ति का रक्तदा कितना होता है80 से 120mmhg
अमीबा में पाचन कैसे होता हैखाद्यधनी
श्वसन में सामान्यतया जंतु को वायु से संबंधित कौन सी क्रिया करनी पड़ती हैआंतरिकश्वसन और उच्च स्वसन
शिराओं में रुधिर को एक ही दिशा में प्रवाहित करने के लिए क्या होते हैंवाल्व
जैव उत्प्रेरक को क्या कहते हैंएंजाइम
बसंत में जड़ और तने के ऊतक में संचित शर्करा का स्थानांतरण किस में होता हैकालिकाओं
आमाशय के आंतरिक स्तर की अमल से रक्षा कौन करती हैश्लेष्मा
रक्तदा को मापने के लिए किसका प्रयोग करते हैंइस फिगो मैनोमीटर
रंध्र के खुलने और बंद होने की क्रियाविधि को क्या नियंत्रित करती हैद्वार कोशिका
मानव के आहार नाल में भोजन में मिलने वाला प्रथम एंजाइम कौन सा हैलार ए माइलेज
कोशिका स्तर पर ऊर्जा का संग्रहण स्रोत कौन सा अनु हैएटीपी
प्लेटलेट का जीवनकाल कितने दिन का होता है10 दिन
लाल रुधिर कणिकाओं का जीवनकाल कितने दिन का होता है120 दिन

लघुत्रात्मक प्रश्न

यकृत (लीवर) शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि कहलाती है। प्लीहा, अग्न्याशय, अंडग्रंथि, डिंबग्रंथि – इन सबकी ग्रंथियों में ही गणना की जाती है। आमाशय की भित्तियों में बहुसंख्या में स्थित पाचनग्रंथियाँ जठर रस का निर्माण करती हैं।

एपिग्लॉटिस (Epiglottis)-यह वाक्यन्त्र (larynx) में पायी जाने वाली उपास्थि होती है। यह भोजन निगलते समय कंठद्वार (glottis) को ढककर श्वास नाल में भोजन जाने से रोकती है।

सही उत्‍तर बड़ी आंत है।

लैक्टिक अम्ल मुख्य रूप से मांसपेशियों की कोशिकाओं और लाल रक्त कोशिकाओं में उत्पन्न होता है। यह तब बनता है जब ऑक्सीजन का स्तर कम होने पर शरीर ऊर्जा के लिए कार्बोहाइड्रेट का उपयोग करता है।

दीर्घ रोम वे संरचनाएं होती हैं, जो क्षुदांत्र की आंतरिक भित्ति पर उंगली के समान पाई जाने वाली उभरी हुई संरचनाएं होती हैं। दीर्घ रोम का मुख्य कार्य पचे हुए भोजन के अवशोषण के लिए तल क्षेत्र को बढ़ाना है

संवरणी पेशियाँ एक गोलाकार मांसपेशी है जो आम तौर पर प्राकृतिक शरीर के मार्ग या छिद्र के संकीर्णन को बनाए रखता है संवरणी पेशियाँ (Sphincters) भो , पाचित भोजन रस व अवशिष्ट की गति को नियंत्रित करती हैं।

कार्य रंध्र के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं –

(i) वाष्पोत्सर्जन (Transpiration) वाष्पोत्सर्जन के दौरान जल वाष्प भी रंध्रों द्वारा ही बाहर निकलती है। (ii) गैसों का आदान प्रदान (Exchange of gases) प्रकाश संश्लेषण एवं श्वसन के दौरान वातावरण से गैसों का विनिमय रंध्रों द्वारा ही होता है।

अपोहन (डायलिसिस) रक्त शोधन की एक कृत्रिम विधि होती है। इस डायलिसिस की प्रक्रिया को तब अपनाया जाता है जब किसी व्यक्ति के वृक्क यानि गुर्दे सही से काम नहीं कर रहे होते हैं। गुर्दे से जुड़े रोगों, लंबे समय से मधुमेह के रोगी, उच्च रक्तचाप जैसी स्थितियों में कई बार डायलसिस की आवश्यकता पड़ती है।

भोजन का पूर्णरूप से पाचन आहार नाल के ‘क्षुद्रांत्र’ यानि छोटी आँत में होता है

कार्बोहाइड्रेट का पाचन मुख गुहा में शुरू होता है।

रेनिन एक एंजाइम है जो प्रोटीन का पाचन करता है। पेप्सिन एक एंजाइम है जिसका उपयोग प्रोटीन को पचाने के लिए किया जाता है। लाइपेज एंजाइम अधिकांश जीवित जीवों में वसा का पाचन करता है।

भोजन पाचन की प्रक्रिया के प्रारंभिक भाग के रूप में, लार के एंजाइम भोजन के कुछ स्टार्च और वसा को आणविक स्तर पर तोड़ते हैं। लार दांतों के बीच फंसे खाने को भी तोड़ती है और उन्हें उस बैक्टीरिया से बचाती है जो क्षय का कारण होते हैं।

हीमोग्लोबिन कम होने से शरीर के अंगों को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती, इस कारण कई समस्याएं होने लगती हैं जैसे थकान, चिड़चिड़ापन, सिरदर्द, सांस फूलना, दिल का तेज़ धड़कना, त्वचा का पीला पड़ना वगैरह। रक्त में हीमोग्लोबिन की कमी हो एनीमिया कहते हैं।

धमनियों के द्वारा रक्त हृदय से शारीरिक अंगों तक जाता है। शिराओं के द्वारा खून हृदय तक जाता है। धमनियों में साफ़ खून का प्रवाह होता है। शिराओं में अशुद्ध रक्त का प्रवाह होता है।

धमनियों के द्वारा रक्त हृदय से शारीरिक अंगों तक जाता है। शिराओं के द्वारा खून हृदय तक जाता है। धमनियों में साफ़ खून का प्रवाह होता है। शिराओं में अशुद्ध रक्त का प्रवाह होता है।

दोहरे परिसंचरण के कारण शरीर को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन प्राप्त हो जाती है। उच्च ऊर्जा की प्राप्ति होती है जिससे शरीर का उचित तापमान बना रहता है।

प्लेटलेट्स शरीर की वो कोशिकाएं होती है, जो शरीर के खून को बहने से रोकती है। कट या खरोच से बहने वाले ब्लड को प्लेटलेट्स की सहायता से रोका जाता है।

मूत्र निर्माण (Urine formation)-नेफ्रॉन का मुख्य कार्य मूत्र निर्माण करना है। मूत्र का निर्माण तीन चरणों में सम्पादित होता है –
(a) छानना/परानिस्यंदन (Ultrafiltration) लोमेरुलस में प्रवेश करने वाली अभिवाही धमनिका, उससे बाहर निकलने वाली अभिवाही धमनिका से अधिक चौड़ी होती है। इसलिए जितना रुधिर ग्लोमेरुलस में प्रवेश करता है, निश्चित समय में उतना रुधिर बाहर नहीं निकल पाता। इसलिए केशिका गुच्छ में रुधिर का दबाव बढ़ जाता है। इस दाब के कारण प्रोटीन के अलावा रुधिर प्लाज्मा में घुले सभी पदार्थ छनकर बोमेन संपुट में पहुँच जाते हैं। बोमेन संपुट में पहुंचने वाला यह द्रव नेफ्रिक फिल्ट्रेट या वृक्क निस्यंद कहलाता है। रुधिर में घुले सभी लाभदायक एवं हानिकारक पदार्थ इस द्रव में होते हैं, इसलिए इसे प्रोटीन रहित छना हुआ प्लाज्मा भी कहते हैं।

(b) चयनात्मक पुनः अवशोषण (Selective reabsorption) – अवशोषण-नेफ्रिक फिल्ट्रेट द्रव बोमेन सम्पुट में से होकर वृक्क नलिका के अग्र भाग में पहुँचता है। इस भाग में ग्लूकोस, विटामिन, हार्मोन तथा अमोनिया आदि को रुधिर में पुनः अवशोषित कर लिया जाता है। ये अवशोषित पदार्थ नलिका के चारों ओर फैली कोशिकाओं के रुधिर में पहुँचते हैं। इनके अवशोषण से नेफ्रिक फिल्ट्रेट में पानी की सान्द्रता अधिक हो जाती है। अब जल भी परासरण विधि द्वारा रुधिर में पहुँच जाता है।

(c) स्रवण (Secretion)- जब रुधिर वृक्क नलिका पर फैले कोशिका जाल से गुजरता है, तब उसके प्लाज्मा में बचे हुए उत्सर्जी पदार्थ पुनः नाफ्रक फिल्ट्रट में डाल दिए जाते हैं। इस अवशेष द्रव में केवल अपशिष्ट पदार्थ बचते हैं, जो मूत्र कहलाता है। यह मूत्र मूत्राशय में संग्रहित होता है और आवश्यकता पड़ने पर मूत्राशय की पेशियों के संकुचन से मूत्र मार्ग द्वारा शरीर से बाहर निकल जाता है।

त्वचा मूत्रमार्ग

जब क्लोरोफिल प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित करता है, तो एक इलेक्ट्रॉन ऊर्जा प्राप्त करता है और फिर उत्तेजित होता है। उत्तेजित इलेक्ट्रॉन दूसरे अणु अर्थात स्वीकर्ता में स्थानांतरित हो जाता है।

क्लोरोफिल अणु आगे ऑक्सीकृत होता है और उस पर धनात्मक आवेश होता है। परिणामस्वरूप, क्लोरोफिल का फोटोएक्टिवेशन, पानी के अणुओं को विभाजित करता है और ऊर्जा को एटीपी में स्थानांतरित करता है। प्रकाश संश्लेषण में दो चरण शामिल हैं। ये प्रकाश-निर्भर प्रतिक्रिया और प्रकाश-स्वतंत्र प्रतिक्रियाएं हैं। प्रकाश-निर्भर प्रतिक्रिया पौधों की पत्तियों में क्लोरोप्लास्ट द्वारा सूर्य के प्रकाश से प्राप्त ऊर्जा का उपयोग करती है। इसके बाद यह प्रकाश-स्वतंत्र प्रतिक्रियाओं के लिए इलेक्ट्रॉनों की आपूर्ति उत्पन्न करता है। प्रकाश-स्वतंत्र प्रतिक्रियाएं कार्बन डाइऑक्साइड को कम करने और अंततः ग्लूकोज का उत्पादन करने के लिए इलेक्ट्रॉनों की आपूर्ति से ऊर्जा का उपयोग करती हैं।

मासपेशियो में ग्लूकोज ऑक्सीजन कि पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीकृत हो ऊर्जा प्रदान करता है तथा ऑक्सीजन कि कम मात्रा होने पर विशलषित होता है तथा लैकिटक अम्ल बनाता है |जीवो कि कोशिकाओ में ऑक्सीकरण पथ निम्न है | 1.  वायवीय श्वसन : इस प्रकम में ऑक्सीजन , ग्लूकोज को खंडित कर जल तथा CO2 में खंडित कर देती है | ऑक्सीजन की पयार्प्त मात्रा में ग्लूकोज विश्लेषित होकर 3 कार्बन परमाणु परिरुवेट के दो अणु निर्मित करता है | 2.  अवायवीय श्वसन : ऑक्सीजन कि अनुपस्थिति में यीस्ट में किण्वन क्रिया होती है तथापायरूवेट इथेनाल व CO2 का निमार्ण होता है

उपापचयी (मेटाबोलिक) क्रियायों के फलस्वरूप बने उत्सर्जी पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने की क्रिया को उत्सर्जन कहते हैं , मल यूरिया 

गोंद तथा रेजिन पौधों के दो ऐसे अपशिष्ट पदार्थ हैं जो मनुष्य के लिए लाभप्रद हैं

1.  वायवीय श्वसन : इस प्रकम में ऑक्सीजन , ग्लूकोज को खंडित कर जल तथा CO2 में खंडित कर देती है | ऑक्सीजन की पयार्प्त मात्रा में ग्लूकोज विश्लेषित होकर 3 कार्बन परमाणु परिरुवेट के दो अणु निर्मित करता है | 2.  अवायवीय श्वसन : ऑक्सीजन कि अनुपस्थिति में यीस्ट में किण्वन क्रिया होती है तथापायरूवेट इथेनाल व CO2 का निमार्ण होता है

जाइलम और फ्लोएम में निम्न अंतर है-
(i) जाइलम की कोशिका मृत होती है जबकि फ्लोएम की कोशिका जीवित होती है।
(ii) जाइलम एवं गुणित खनिज का स्थानांतरन करती है जबकि फ्लोएम खाद्य पदार्थों का स्थानांतरन करती है।

लाल रक्त कणिकाओं (RBC) का निर्माण अस्थि मज्जा में होता है लेकिन भ्रूण अवस्था में इसका निर्माण यकृत में होता है। इसका विनाश यकृत और प्लीहा में होता है।

श्वेत रक्त कणिकाएँ (White blood corpuscles)-रक्त की श्वेत रक्त कणिकाओं (WBC) में हीमोग्लोबिन नहीं पाया जाता अत: यह रंगहीन होती हैं। प्रत्येक श्वेत रक्त कणिका में केन्द्रक पाया जाता है। इनका निर्माण लाल अस्थि मज्जा में ही होता है। कणिका द्रव्य में कणिकाओं (granules) की उपस्थिति के आधार पर यह दो प्रकार की होती है – कणिकामय श्वेत रक्त कणिकाएँ तथा कणिकाविहीन श्वेत रक्त कणिकाएँ। कणिकाणु या कणिकामय श्वेत रक्त कणिकाएँ (Granulocytes) ये तीन प्रकार की होती हैं—बेसोफिल, न्यूट्रोफिल, इओसिनोफिल अकणिकाणु या कणिकाविहीन श्वेत रक्त कोशिकाएँ (Agranulocytes) : यह दो प्रकार की होती हैं-मोनोसाइट और लिम्फोसाइट कुछ श्वेत रक्त कोशिकाएँ भक्षक कोशिकाओं (phagocytes) की तरह कार्य करती हैं, जैसे-मोनोसाइट, न्यूट्रोफिल व महाभक्षक कोशिका (macrophages), मोनोसाइट ही महाभक्षक कोशिका में परिवर्तित हो जाती है। श्वेत रक्त कणिकाएँ जीवाणु भक्षण कर तथा एंटीबाडीज का निर्माण कर शरीर को रोगों से बचाती हैं इसीलिए इन्हें शरीर के सैनिक कहा जाता है। लिंफोसाइट तीन प्रकार की होती है-बी लिम्फोसाइट, टी लिम्फोसाइट व प्राकृतिक मारक कोशिकाएँ।

ऐसी बहि:स्रावी ग्रन्थियाँ (नलिका युक्त ग्रन्थियाँ) जिनका कुछ भाग अन्त:स्रावी (नलिकाविहीन) होता है, मिश्रित ग्रन्थि कहलाती है, जैसे-अग्न्याशय ( पाचक रस व इन्सुलिन हॉर्मोन का उत्पादन), वृषण (शुक्राणुओं तथा नर लिंग हॉम्मोन का उत्पादन)।

श्वसन, फुफ्फुसों में वायु लाता है जहाँ विसरण के माध्यम से वायुकोश में गैस का आदान-प्रदान होता है।

गैस का आदान-प्रदान फेफड़ों में और उनका आवरण बनाने वाली कैपिलरीज़ में मौजूद लाखों एल्विओलाई में होता है। जैसा नीचे दिखाया गया है, सांस द्वारा अंदर खींची गई ऑक्सीजन, एल्विओलाई से कैपिलरीज़ में मौजूद रक्त में जाती है और कार्बन डाइऑक्साइड, कैपिलरीज़ में मौजूद रक्त से एल्विओलाई में मौजूद हवा में जाती है।

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